
1955 की हिंदी फिल्म श्री 420 के चर्चित गाने ‘मेरा जूता है जपानी, ये पतलून इंग्लिशतानी, सर ये लाल टोपी रूसी, फिर भी दिल है हिंदुस्तानी’ के संदर्भ दक्ष हाथों ने बदल दिए हैं। अब दिल व दक्षता दोनों हिंदुस्तानी हैं, जो रूसियों के लिए जूते बना रहे हैं। ये संभव हो सका है, भारत में आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल व कौशल विकास से। विश्व की महाशक्ति रूस की सेना को बिहार के हाजीपुर की औद्योगिक इकाई से जूतों की आपूर्ति की जा रही है। ये जूते माइनस 40 डिग्री सेल्सियस तक कारगर हैं। श्रम और कौशल समाज के हर वर्ग की महिलाओं का है. पुरुष सहयोगी की भूमिका में हैं।
हाजीपुर में काम्पेटेंस एक्सपोर्ट महवेट लिमिटेड कंपनी की जूता फैक्ट्री के प्रबंधक शिवकुमार बताते हैं कि गत छह वर्षों से चमड़े के ऐसे जूते बना रहे हैं, जिसकी आपूर्ति केवल रूसी सेना को की जा रही है। अब तक लाखों जोड़ी जूते भेजे जा चुके हैं। अब यूरोप के बाजार में भी उतरने की तैयारी है। साथ ही स्थानीय हाजीपुर की फैक्ट्री में रूसी सेना के लिए जूते तैयार करती महिलाएं। जागरण केंद्रीय मंत्री चिराग आएंगे फैक्ट्री का निरीक्षण करने रूस की सेना के लिए हाजीपुर में जूते तैयार किए जाने की जानकारी मिलने के बाद केंद्रीय मंत्री सह हाजीपुर सांसद चिराग पासवान ने एक्स हैंडल पर शीघ्र ही फैक्ट्री के निरीक्षण की बात कही है। लिखा है कि वे यहां काम करने वाली हुनरमंद महिलाओं से अवश्य मिलेंगे।
बाजार की मांग व आवश्यकताओं के अनुसार भी जूते लांच किए जाएंगे। कंपनी की प्रभुख इकाई उत्तर प्रदेश के कानपुर में ही। गत वर्ष कंपनी का टर्न ओवर लगभग एक सौ करोड़ था। प्रबंधक के अनुसार कारखाने में दर कटिंग से लेकर उसे जुती के लिए उपयुक्त बनाने तक आद्याधुनिक मशीन का इस्तेमाल किया जाता है। स्वास यह कि तुज से बचाय के लिए जूते की ऊपरी हिस्से में फर लगाया जाता है। जूते के तलये और सोज का अलग डिजाइन य अलग मैटेरियल है जिससे जूते हल्के होते हैं और बर्फ में फिसलते भी नहीं। यहा का बना जुतः सुरक्षा से अंतरराष्ट्रीय मानको एर शत प्रतिशत खरा उत्तरा है। कंपनी के प्रबंधक ने बताया कि गैराटी में लगभग तीन सो कभी काम करते है। इनमें 70 प्रतिशत महिलार है। ये महिलाए हाजीपुर और हस्तौ आसपास की है। जिन्हें गहन प्रशिक्षण दिया गया है। सतत अभ्यास से इनका हुन्ः और निखर गया है।