
पितरों के महापर्व पितृपक्ष में अब तक गयाजी में करीब पांच लाख तीर्थयात्री पहुंच चुके हैं। गया की संपूर्ण वेदियों तीर्थयात्रियों से गुलजार है। प्रत्येक महत्वपूर्ण वेदियों पर पिंडदानी पहुंच श्राद्ध के कर्मकांड को पूरा कर रहे हैं। सबसे अधिक भीड़ पिंडदानियों की विश्व प्रसिद्ध श्री विष्णुपद, देवघाट व फल्गु के तट पर देखने को मिल रही है। सुबह से लेकर दोपहर बाद तक पिंडदानी श्राद्ध के कर्मकांड को कर रहे हैं। श्री विष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति के सचिव गजाधरलाल पाठक ने बताया कि गयाजी में अब तक पांच लाख से ऊपर तीर्थयात्रियों का मेला लग चुका है। नवमी तिथि से पिंडदानियों की और भीड़ बढ़ेगी। उन्होंने बताया कि इस बार पितृपक्ष मेला में एक और तीन दिन वाले पिंडदानी सर्वाधिक है। एक दिन वाले पिंडदानी विष्णुपद, फल्गु, प्रेतशिला के साथ अक्षयवट में भी श्राद्ध कर ले रहे हैं। उन्होंने बताया कि पितृपक्ष मेला का समापन दो अक्टूबर को है। इस दिन पिंडदानी अक्षयवट में श्राद्ध शय्या दान करेंगे और तीर्थ पुरोहितों से सुफल लेंगे।
आचार्य ने कहा- चंद्रपद वेदी पर श्राद्ध कर पिंडदानियों ने पूर्वजों को प्राप्त कराया अमृत आज सोलहवेदी पर चार दिनों के कर्मकांड को करेंगे पूरा गयाश्राद्ध की अष्टमी तिथि को पिंडदानी मतङ्गपद, कांचपद, इंद्रपद, अगस्त्य पद, कश्यप पद पर श्राद्ध करेंगे। यहां श्राद्ध कर सोलहवेदी पर चार दिनों के कर्मकांड को पूरा करेंगे। आचार्य की माने तो पहले सभी वेदियां गया के आसपास स्थित थी। इसे एक वर्ष में तीर्थयात्री संपत्र करते थे, अब यह विष्णुपद के पास ही है। इन वेदियों पर श्राद्ध करने से पितरों को ब्रह्मलोक प्राप्त होता है। वहीं कल सीताकुंड वेदी पर पिंडदान को जाएंगे।
चारों वेदियों पर पिंडदान का विशेष महत्व आचार्य नवीन चंद्र मिश्र वैदिक ने बताया कि इन चारों वेदियों पर पिंडदान का विशेष महत्व है। चंद्रपद पर श्राद्ध कर पिंडदानियों ने पितरों को अमृत प्राप्त कराया। गणेश पद पर श्राद्ध कर रुद्रलोक दिलाया। सभ्याग्नि पद पर श्राद्ध कर ज्योतिष्होम यज्ञ के समान पितर को फल मिला। वहीं आवसध्याग्नि पद पर श्राद्ध कर पितरों को चंद्रलोक दिलाया। आचार्य ने बताया कि पितृपक्ष में श्राद्धपक्ष का विशेष महत्व है। इस समय चंद्रमा धूमिल होने से पितृलोक से पृथ्वी का सीधा संपर्क बनता है।