ऑस्टियो आर्थराइटिस (OA) को अक्सर उम्र बढ़ने के कारण होने वाला “वियर एंड टियर” आर्थराइटिस यानी गठिया कहा जाता है, लेकिन रूमेटॉइड आर्थराइटिस (आरए) इससे बिल्कुल अलग है। यह एक लंबे समय तक रहने वाली ऑटोइम्यून बीमारी है, जो 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1.3 करोड़ लोगों को प्रभावित करती है। इसमें शरीर की रक्षा प्रणाली, जो आमतौर पर बीमारियों से बचाती है, गलती से अपने ही स्वस्थ ऊतकों (हेल्दी टिश्यूज) पर हमला करती है। आरए में यह हमला जोड़ों की नरम परत, सिनोवियम, पर होता है, जो जोड़ों को सुचारू रूप से चलाने के लिए फ्लुड बनाता है। इस गलत इम्यून प्रतिक्रिया से पुरानी सूजन होती है, जिससे दर्द, सूजन और अकड़न होती है। समय के साथ, यह हड्डियों और कार्टिलेज को नुकसान पहुंचा सकती है और अगर इलाज न हो तो अन्य अंगों को भी प्रभावित कर सकती है। बिना शुरुआती और प्रभावी उपचार के, यह स्थायी जोड़ क्षति और अक्षमता का कारण बन सकती है।
विशेषज्ञ, खासकर रूमेटोलॉजिस्ट, भारत में आरए के बारे में जागरूकता बढ़ाने की जरूरत पर जोर दे रहे हैं, खासकर महिलाओं में, जो 30 से 60 वर्ष(4) की उम्र के बीच इस बीमारी से अधिक प्रभावित होती हैं। इसकी बढ़ती मौजूदगी के बावजूद, आरए पर कम ध्यान दिया जाता है और इसको पहचानने में भी देरी होती है। अगर शुरुआती निदान न हो तो यह अपरिवर्तनीय क्षति और अक्षमता का कारण बन सकता है।
डॉ. अर्घ्य चट्टोपाध्याय, परामर्शदाता रूमेटोलॉजिस्ट और एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी एंड रूमेटोलॉजी, कोलकाता के अकादमिक निदेशक, ने कहा, “आरए एक ऑटोइम्यून बीमारी है, जिसमें शरीर अपने ही जोड़ों पर हमला करता है। इससे स्थायी क्षति हो सकती है, इसलिए शुरुआती निदान और उपचार महत्वपूर्ण है ताकि बीमारी की प्रगति धीमी हो और दर्द से राहत मिले। यह अक्सर धीरे-धीरे शुरू होता है, इसलिए आरए को जल्दी पकड़ना मुश्किल हो सकता है, लेकिन सुबह की अकड़न जो 45 मिनट से ज्यादा रहती है, लगातार जोड़ों की सूजन, बिना कारण हल्का बुखार और थकान जैसे लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए।”
