December 29, 2025
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तुपुदाना, रांची की 31 वर्षीय दो बच्चों की माँ, जो गंभीर स्थिति में भगवान महावीर मणिपाल हॉस्पिटल्स, रांची लाई गई थीं और चलना-फिरना तो दूर, दैनिक कार्य भी नहीं कर पा रही थीं, जटिल माइट्रल वॉल्व रिप्लेसमेंट सर्जरी के बाद पूरी तरह सुधर रही हैं। यह जीवनरक्षक सर्जरी अस्पताल के कंसल्टेंट – कार्डियोथोरेसिक एवं वैस्कुलर सर्जरी, डॉ. अरुमित पलित द्वारा की गई। रोगी बबीता कुमारी (नाम परिवर्तित) माइट्रल वॉल्व लीकेज से पीड़ित थीं, जिसकी शुरुआत उनके जुड़वा बच्चों के जन्म के बाद हुई थी। आर्थिक और पारिवारिक परिस्थितियों के कारण वह 12 वर्ष पहले उचित उपचार नहीं करा पाई थीं। अस्पताल पहुँचने तक उनका हृदय लगातार दबाव में रहने से काफी बढ़ चुका था और स्थिति बेहद गंभीर थी।

डॉ. अरुमित पलित ने बताया, “माइट्रल वॉल्व प्रोलैप्स (MVP) प्रजनन आयु की महिलाओं में सबसे आम वॉल्व विकार है और यह लगभग 12–17% गर्भवती महिलाओं में देखा जाता है। इसलिए समय पर पहचान और प्रसव के बाद कार्डियक जाँच बेहद जरूरी है। जब यह मरीज हमारे पास आईं, तब उनका हृदय काफी बड़ा हो चुका था और हालत नाज़ुक थी। जोखिम के बावजूद हमने जटिल माइट्रल वॉल्व रिप्लेसमेंट किया और उनकी शारीरिक संरचना के अनुसार बड़ा कृत्रिम वॉल्व प्रत्यारोपित किया। सर्जरी सफल रही और उन्होंने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी। जुड़वा गर्भावस्था में रक्त मात्रा और हृदय पर भार काफी बढ़ जाता है, जिससे कुछ महिलाओं में वॉल्व लीकेज या प्रोलैप्स हो सकता है। प्रसव के बाद यदि सांस फूलना या अत्यधिक थकान बनी रहे तो इसे कभी नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए।”

उन्होंने आगे कहा, “सर्जरी के बाद उनकी रिकवरी धीरे-धीरे लेकिन लगातार बेहतर होती रही। सिर्फ आठ दिनों में उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया और वह अपने पैरों पर चलकर अस्पताल से बाहर निकलीं—यह उस स्थिति से बिल्कुल अलग था जब वह व्हीलचेयर पर लाई गई थीं और हर सांस के लिए संघर्ष कर रही थीं। उनका हृदय अभी भी बड़ा है, लेकिन नया वॉल्व रक्त प्रवाह को सामान्य कर चुका है और आने वाले महीनों में ‘कार्डियक रीमॉडेलिंग’ की प्रक्रिया से हृदय धीरे-धीरे सामान्य होने लगेगा। यदि यह ऑपरेशन वर्षों पहले हो जाता, तो उनका हृदय और बेहतर स्थिति में होता। फिर भी अब उनका जीवनस्तर काफी अच्छा हुआ है और आगे उनके लिए एक नया भविष्य खुल रहा है।”

अपनी भावनाएँ साझा करते हुए मरीज बबीता कुमारी (नाम परिवर्तित) ने कहा, “अस्पताल आने से पहले मैंने लगभग उम्मीद छोड़ दी थी। मैं चल भी नहीं पाती थी। मेरे पति और दोनों बड़ी बहनें हर समय मेरे साथ थीं। दूसरे बच्चे के जन्म के बाद से ही मेरा सांस फूलता था। आज मैं अपने पैरों पर खड़ी होकर घर लौट रही हूँ। डॉ. अरुमित पलित और मणिपाल हॉस्पिटल रांची की पूरी टीम ने मुझे नई ज़िंदगी दी है, जिसके लिए मैं हमेशा आभारी रहूँगी।”

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