भारतीय रुपया (INR) हाल ही में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 90 का मनोवैज्ञानिक स्तर तोड़कर रिकॉर्ड निचले स्तर (90.29 प्रति डॉलर) पर पहुंच गया है, जिससे यह 2025 में एशिया की सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्राओं में से एक बन गया है। इस गिरावट के पीछे मुख्य कारण अमेरिका के साथ प्रस्तावित व्यापार समझौते में लगातार हो रही देरी है, जिसके चलते अनिश्चितता का माहौल बना हुआ है। इसके अलावा, वर्ष 2025 में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) द्वारा भारतीय शेयर बाजारों से 17 अरब डॉलर से अधिक की भारी निकासी और अमेरिका द्वारा भारतीय वस्तुओं पर लगाए गए 50 प्रतिशत तक के दंडात्मक शुल्क ने भी निर्यात और बाजार की धारणा को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है। हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने अस्थिरता को कम करने के लिए डॉलर की बिक्री की है, लेकिन सरकार ने इस गिरावट को निर्यातकों के लिए फायदेमंद बताते हुए इस पर अत्यधिक चिंता व्यक्त नहीं की है।
विश्लेषकों और मुद्रा रणनीतिकारों के एक रॉयटर्स पोल के अनुसार, भारतीय रुपये में अगले तीन से 12 महीनों में मामूली सुधार देखने को मिल सकता है और यह 89 प्रति डॉलर के आसपास आ सकता है। हालांकि, विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया है कि रुपये की यह वापसी भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते पर सहमति बनने पर ही निर्भर करती है। यह समझौता विदेशी निवेशकों का मनोबल बढ़ाने, पूंजी प्रवाह को बेहतर बनाने और रुपये को आगे की तेज गिरावट से रोकने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। यदि यह व्यापार गतिरोध जल्द ही समाप्त होता है, तो ही भारतीय मुद्रा को मौजूदा दबाव से वास्तविक राहत मिल सकेगी।
